Friday, 29 June 2018

कर्जा किसी ना किसी रूप में चुकाना ही पड़ता है इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में - कहानी

हिंदुस्तानी ज्ञान
हिंदुस्तानी ज्ञान


एक गांव की बात है पंडित और पंडिताइन रहते थे  पंडित बहुत ज्ञानी थे


एक दिन  पंडित की धर्मपत्नी ने कि हमें वंश चलाने के लिए संतान की आवश्यकता है
पर पंडित जी ने कहा नहीं हम कोई संतान नहीं करेंगे उनकी पत्नी ने कहा ऐसे नहीं
हमारा वंश कैसे चलेगा उन्होंने कहा नहीं हम कोई बच्चा पैदा नहीं करें फिर भी उनकी
पत्नी ने कहा नहीं हमें वंश चलाने के लिए संतान तो चाहिए!



पंडित जी ने कहा चलो ठीक है मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं लेकिन मेरी एक शर्त है
जो मैं कहूंगा वहीं बच्चा तुम रखो नहीं तो नहीं रख बोलो है मंजूर


पंडित जी की पत्नी ने कहा ठीक है मैं तुम्हारी बात मान लेता हूं


कुछ समय पश्चात पंडितानी के गर्भ में एक बच्चा आया पंडित ने जल  पढ़कर पेट
पर मारा और पूछा कौन हो तुम पेट में से आवाज आई मैं तुम्हारा पुत्र हूं पंडित ने
पूछा क्यों आए हो!  पेट से आवाज आई  तुमने मेरे 15 सो रुपए लिए हैं उसे लेने
आया है पंडित ने पूछा कितने दिन के लिए पेट में से आवाज आई 4 महीनों के लिए!


वह बच्चा जैसे ही पैदा हुआ पंडित ने 15 सो रुपए लिए उस बच्चे की छाती पर
रखा और उस बच्चे को दफना दिया और कहां ले जा  अपने पैसे!


कुछ समय  पश्चात पंडितानी के गर्भ में एक बच्चा आया फिर से पंडित ने जल
पढ़कर पेट पर मारा और पूछा कौन हो तुम अंदर से आवाज आई तुम्हारा पुत्र
पंडित ने पूछा क्या चाहिए तुम्हें अंदर से आवाज आई तुमने मेरे ₹2000 लिए हैं
उसे लेने आया हूं कितने दिन के लिए 1 साल के लिए!  जैसे ही वह बच्चा पैदा
हुआ!  पंडित ने उसे उठाया ₹2000 लिए उसकी छाती पर रखें और उसे
दफना दिया और कहा लेजा अपने पैसे!


ऐसे करते करते पंडित ने 6 बच्चों को दफना दिया


 कुछ समय पश्चात पंडितानी के  गर्भ  फिर से एक बच्चा है पंडित ने जल पढ़कर
मारा पूछा कौन हो तुम अंदर से आवाज आई तुम्हारा पुत्र क्या चाहिए तुम्हें अंदर
से आवाज आई मुझे कुछ नहीं चाहिए मुझे तुम्हारे ₹900000 चुकाने पंडित ने
कहा ठीक है!


पंडित ने पंडितानी से कहा यह बच्चा हम रखेंगे पर इससे कभी भी कुछ मत
लेना पंडितानी ने कहा ठीक है


वह बच्चा पैदा हुआ धीरे-धीरे बढ़ा हुआ और वह बड़ा होकर वैध बन गया जो
कि बीमारियों का उपचार करता है एक दिन वह कहीं जा रहा था तभी उसके
राज्य के राजा की पुत्री बीमार पड़ गई और राज्य में  शोर मचाया कि राजा की
बेटी अब नहीं बचेगी तभी वह  वेद भी राज्य के दरबार में गया और उसने देखा
कि इस बीमारी का उपचार है और वह औषधि मैं बना लेता हूं मैं तुरंत भागा भागा
गया और जड़ी बूटियां ढूंढ कर लाया और राजकुमारी को कुछ दिनों तक उपचार
किया और वह राजकुमारी ठीक हो गई!


राजा की पत्नी ने खुश होकर उसे नौलखा हार दे दिया! यह तुम्हारा उपहार है
इसे स्वीकार करो और वह लड़का उस हार को लेकर अपने घर गया और
अपनी मां के गले में डाल दिया!  मां ने कहा कहां से चोरी करके लाया है उस
लड़के ने बोला  मां  मैं चोरी करके नहीं लाया हूं! उपहार में लाया हूं जो कि
 रानी ने मुझे दिया है! यह सुनकर उसकी मां बहुत खुश हूं!


और जब पंडित जी घर वापस आए तो उन्होंने देखा कि उनकी पत्नी के गले में
एक नौलखा हार  पढ़ा हुआ है  पंडित ने पूछा यह कहां से आया है पंडितानी ने
कहा तुम तो हमेशा कहते रहते थे कि अपना बेटा नालायक है कुछ काम धंधा
नहीं करता यह वही लाया है पंडित ने कहा सत्यानाश हो तेरा अब तेरा पुत्र
ज्यादा दिन के लिए तेरा नहीं है! पंडितानी ने कहा तुम तो ऐसे ही बोलते रहते
हो! और वह सब सो गए जब सुबह उठा तो उनके पुत्र के पेट में दर्द होने लगा
दर्द इतना किस असहनीय हो गया पंडित ने गांव के भेद बुलाए और बहुत जगह
दिखाएं पर कोई उसका उपचार नहीं कर पाया पंडित ने अपने पंडितानी से कहा
कि मैंने पहले ही कहा था तुमसे  तुम्हारा पुत्र अब तुम्हारा नहीं रहेगा!  पंडितानी
वह हार लड़का को देने दोबारा वापस गई!  कहा यह ले अपना  हार  लड़के ने
कहा दी हुई चीज वापस नहीं ली जाती और लड़के ने कहा तुम्हारा मेरा हिसाब
पूरा अब मैं चलता हूं!


"हमें आशा है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगा हमारी आप से विनती है इसे लाइक करना और शेयर करना ना भूलें! ताकि हम आप के लिए ऐसी और कहानी लेट रहे धन्याबाद"

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