रावण
एक समय था जब जय और विजय वैकुंठ के द्वारपाल थे!
बैकुंड आए हुए थे!जय विजय ने उन्हें बेहतर प्रवेश
करने नहीं दिया!सनत कुमार उन्हें इसे अपना अपमान
समझा! और श्राप दिया जय विजय को बैकुंठ से
निष्कासित कर दिया जाएगा और यह मृत्युलोक में
रहेंगे! जब मैंने सनत कुमार को सत्य बताया! तो
उन्होंने श्राप से मुक्त होने का उपाय बताएं! या तो
जय विजय को सात जन्म मेरे भक्तों के रूप में लेने
होंगे! जब उन्हें मृत्यु लोक से मुक्ति प्राप्त होगी! या
तीन जन्म मेरे परम शत्रु के रूप में जन्म लेना होगा
और उनका वध मेरे हाथों होगा! जय विजय विष्णु के
परम भक्त थे! और वहां विष्णु से दूरी बनाए नहीं रखना
चाहते थे! इसलिए जय विजय ने तीन जन्म विष्णु के परम
शत्रु के रूप में जन्म लेने का स्वीकार किया! ताकि जय
विजय का अनंत विष्णु के हाथों से हो!
पहला जन्म हिरण्याक्ष और हिरणा कश्यप के रूप में और
दूसरा रावण और कुंभकरण के रूप में हुआ और
तीसरा जन्म शिशुपाल और दंतवक्र के रूप में द्वापर युग में हुआ था!
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