Tuesday 10 April 2018

बाबा दीप सिंह - स्वर्ण मंदिर

बाबा दीप सिंह जी - Hyndustani Gyaan
बाबा दीप सिंह


हम आपके सामने एक ऐसे योद्धा की कहानी लेकर आए हैं!  जिसको सुनकर आप हैरान रह जाएंगे!
और इस योद्धा के बारे में कुछ तथ्य स्वर्ण मंदिर से भी जुड़े हुए हैं जोकि पंजाब में है!

क्या आपने कभी सुना है कि कोई योद्धा सर कटने के बावजूद भी लड़ता रहे नहीं ना!  तो आपको यह
कहानी अवश्य सुननी चाहिए और यह कहानी वास्तविक दुर्घटना पर आधारित है!


और यह योद्धा महान राज्य आर्य व्रत  से था जो कि अब हिंदुस्तान के नाम से भी जाना जाता है जिसे
कुछ लोग इंडिया के नाम से भी जानते हैं!

बाबा देव सिंह जी एक वीर सिख योद्धा थे!

जिनका जन्म अमृतसर में हुआ था!



काफी कम उम्र से ही वह युद्ध कला सीखने लगे थे! और 20 साल की उम्र तक एक कुशल योद्धा बन गए थे!
1702 में शादी करने के बाद वह दम दमा गुरुद्वारे की देखभाल करने लगे थे!
बाबा दीप सिंह जी को कई भाषाओं का ज्ञान था गुरुमुखी,  संस्कृत, पर्शिया, अरेबिक
जैसी कई भाषाओं का ज्ञान था!

1757 में काबुल से दिल्ली लौटते समय  एक इस्लामिक आतंकी अहमद खान अब्दाली के  
दस्ते पर हमला करके कई बंधी बच्चे और औरतों को छुड़ा लिया इस हमले से बौखला कर
अब्दाली ने अपने बेटे तैमूर शाह को  सिखों का विनाश करने का आदेश दिया और तैमूर
ने अपने बाप का आदेश पाकर कई जगह आतंक फैलाया और कई गुरुद्वारे को नुकसान भी  पहुंचाया था!

इस दौरान तैमूर खान ने सिखों के पवित्र स्थल हरमिंदर साहिब ( जिसे अब स्वर्ण मंदिर के नाम
से भी जाना जाता है) को भी बहुत नुकसान पहुंचाया! और वहां के पवित्र कुंड को निर्दोषों के खून
से लाल कर दिया तैमूर ने हर किसी को मौत के घाट उतारा जिसमें बच्चे, औरतें  और बुजुर्ग भी शामिल थे!




हरमिंदर साहिब को नुकसान पहुंचाए जाने की खबर बाबा देव सिंह को  लगी! तो उन्होंने हरमिंदर
साहिब को मुगलों आतंकी से आजाद कराने के लिए आदेश दिया और वहां दिवाली बनाने का भी आदेश दिया!

उनका यह शानदार भाषण सुनकर तकरीबन 500 योद्धा उनके साथ हरविंदर साहब को मुगलों
आतंकियों से छुड़ाने के लिए निकल पड़े!




देखते ही देखते बाबा देव सिंह के साथ तकरीबन 5000 के खालसा योद्धा शामिल हो गए !

यह खबर सुनकर तैमूर साह ने 20000 की आतंकी टुकड़ी को हरविंदर साहब की तरफ रवाना कर  दीया!

यह खबर जैसे ही बाबा देव सिंह को लगी तो उन्होंने  अपने सभी सैनिकों को एक वचन दिया कि मैं
अपनी आखिरी सांस हरविंदर साहब में ही लूंगा!




और कुछ समय पश्चात युद्ध आरंभ हो गया और युद्ध करते-करते बाबा दीप सिंह की सेना
हरविंदर साहब के नजदीक पहुंच गई ! और वहां पर जनरल अटल खान और बाबा देव सिंह
के बीच युद्ध चला और उसी दौरान दोनों योद्धा एक दूसरे पर तलवार से वार करते हैं और
जनरल अटल सिंह की तलवार बाबा देव सिंह की गर्दन पर लगती है!  और बाबा देव सिंह की
तलवार अटल खाकर गर्दन पर लगती है! और अटल खान की गर्दन काटकर धड़ से अलग हो
जाती हैं और सर जमीन पर गिर जाता है और बाबा देव सिंह की गर्दन भी कुछ हद तक कट
गई और एक तरफ झुक गई और वह जमीन पर गिर गया! तभी एक खालसा योद्धा ने उन्हें
उन का वचन याद दिलाया!




वह वचन सुनकर उन्होंने  अपनी गर्दन को एक हाथ से पकड़ा और एक हाथ से लड़ते हुए वह हरमिंदर
साहब के अंदर पहुंच गए ! और वह जैसे ही गुरुद्वारे पर अपना पहला कदम रखते हैं तभी उनके प्राण
निकल जाते हैं!  और उन्होंने अपना वचन पूरा करते हुए अपनी आखिरी सांस गुरुद्वारे में ही!

और जहां उनका सर गिरा आज वहां पर एक चिन्ह बना हुआ है जिसे लोग पूछते हैं!  हालांकि
बाबा दीप सिंह की उम्र लगभग 70 से 75 के बीच में थी ! चौंकाने वाली बात यह है कि वह जिस
तलवार से लड़ते थे वह तकरीबन 15 से 18 किलो के बीच में थी!  वह एक जवान योद्धा से भी
ज्यादा की ताकत रखते थे!

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