प्रार्थना
हे मेरे जगदीश तुम सृष्टि के पालनहार हो!
मस्तक नवाकर प्रेम से प्रणाम बारंबार हो!
निराकार सर्वाधार लेते नहीं अवतार हो!
कण-कण में व्यापक हो कोई स्थान खाली है नहीं!
हर प्राणियों के प्राण हो जीवन के प्राणाधार हो!
अज्ञानियों से दूर रहते ज्ञानियों के पास में!
हर जगह मौजूद हो रखते नजर 1 सार हो!
योगी ऋषि मुनि कोई भी पार पा सकता नहीं!
रक्षक हो संसार के तुम्हें दाता हार हो!
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